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ऑस्ट्रेलिया में 62 साल में सबसे ज्यादा गर्मी, तापमान 50 के पार, जानिए इसके कारण

नई दिल्ली. एक तरफ जहां धरती के अधिकांश हिस्सों में कड़ाके की सर्दी (winter) पड़ रही है, वहीं ऑस्ट्रेलिया (Australia) में लोगों को भीषण गर्म...



नई दिल्ली. एक तरफ जहां धरती के अधिकांश हिस्सों में कड़ाके की सर्दी (winter) पड़ रही है, वहीं ऑस्ट्रेलिया (Australia) में लोगों को भीषण गर्मी (Hottest temperature) का सामना करना पड़ रहा है. ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी गोलार्ध में शुक्रवार को तापामान 50 डिग्री के खतरनाक स्तर को पार कर गया है जिसके बाद सरकार ने लोगों को घर से बाहर न निकलने की सलाह दी है. ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी-पश्चिमी तट पर लू चल रही है और तापमान 50.7 डिग्री तक पहुंच गया है. पिछले 62 सालों में इस साल ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ रही है.

ऑस्ट्रेलिया के पिलबारा क्षेत्र में पड़ती है हर साल भीषण गर्मी
जलवायु वैज्ञानिक और कार्यकर्ता ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते दुष्परिणामों को लेकर चेतावनी दे रहे हैं और कह रहे हैं कि यह सब मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसों का परिणाम है. यूएस नेशनल ओसियनिक एंड एडमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (US National Oceanic and Atmospheric Administration) के मुताबिक 2021 साल सबसे गर्म साल में से एक था. ऑस्ट्रेलिया का उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र पिलबारा का मौसम आमतौर पर सूखा और गर्मी के लिए जाना जाता है. इस महीने में अक्सर यहां का तापमान बढ़ जाता है. लेकिन इस साल पिछले 62 साल का रिकॉर्ड टूटा है. गुरुवार को यहां का तापमान 50.7 डिग्री तक पहुंच गया है.

10.3 अरब डॉलर का नुकसान
ऑस्ट्रेलिया प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैस उत्पादन करने वाले देशों में एक है. जलवायु वैज्ञानिक ऑस्ट्रेलिया को इसका उत्पादन कम करने की चेतावनी देते हैं लेकिन सरकार कोयले और जीवाश्म इंधन पर अपनी निर्भरता कम करने को तैयार नहीं है. सरकार का कहना है कि इससे खर्च बढ़ेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती गर्मी के कारण लोगों की हेल्थ पर प्रभाव पड़ेगा और बाहर में काम कर रहे मजदूरों की उत्पादकता में कमी आएगी. इससे अरबों डॉलर का नुकसान होगा. ड्यूक यूनिवर्सिटी के मुताबिक भीषण गर्मी के कारण ऑस्ट्रेलिया को पिछले दो दशक से प्रति साल औसतन 10.3 अरब डॉलर और 218 उत्पादक घंटे का नुकसान उठाना पड़ता है. रिसर्च के मुताबिक आने वाले सालों में ऑस्ट्रेलिया में तापमान बढ़ने की और आशंका है क्योंकि विश्व औद्योगिकीकरण से पूर्व के तापमान से 1.5 डिग्री ज्यादा तापमान की ओर बढ़ रहा है.

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