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छत्तीसगढ़ के 175 वाद्य यंत्रों को 43 वर्षो की तपस्या के बाद अपने पास संग्रहित किए है रिखी क्षत्री

  राजिम। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक कलाकार रिखी क्षत्री किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनके रग-रग में छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति रची बसी...


 


राजिम।
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक कलाकार रिखी क्षत्री किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनके रग-रग में छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति रची बसी है। कार्यक्रम प्रस्तुति के बाद मीडिया सेंटर पहुंचे लोक रागिनी लोक कला मंच भिलाई के रिखी क्षत्री ने चर्चा में बताया कि 26 सदस्यों को लेकर प्रारंभ में कार्यक्रम की प्रस्तुति देते और सीखने का क्रम जारी किये। वर्तमान में कुल 38 कलाकार है। 40 वर्षो से कला की साधना कर रहे है। पूर्वजों को दी हुई धरोहर वाद्ययंत्र लुप्त होने के कगार में है, जिसे सहेजना है। पुरातन गीत और वाद्ययंत्रों को बचाकर रखना, उन्हें स्थापित करना और आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित रखना हमारी लोक कलामंच का उद्देश्य है। 1999 से लोक रागिनी कलामंच का जो सफर चालू हुआ, वो हमेशा आगे ही बढ़ता रहा। वैसे तो 15 वर्ष दूसरे के सानिध्य में रह कर कार्य किया। लुप्त हो रहे वाद्ययंत्रों की जानकारी देते हुए बताया कि 175 वाद्ययंत्र अभी मेरे पास संरक्षित है, जिसमें 20 से 25 विलुप्त हो गये है। जिनकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। खीरकीची, दंडारी, ठहरी, ओलकोजा, चरहे, टेहडोर और कुटेला वाद्ययंत्र है। 43 वर्षो तक वाद्ययंत्रों के बारे में सर्च करके अलग-अलग स्थानों में भटकने के बाद बहुत बड़ी उपलब्धि मुझे मिली है। छत्तीसगढ़ के वाद्ययंत्र के बारे में संपूर्ण जानकारी पर मेरे द्वारा पुस्तक लिखा गया है, जिसमें उसके पूरे इतिहास को बताया गया है। इस पुस्तक को 8 भागों में बांटा गया है सभी के बारे में विस्तार से बताया गया है। हम नये कलाकारों को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण देते है जिसमें हमारे द्वारा संग्रहालय में संरक्षित वाद्ययंत्रों की जानकारी बारीकी से दी जाती है। आगे विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि वे वाद्ययंत्र में इस प्रकार डूब चुके है कि बाजा से जंगल, चिडिय़ा, झरना, नदी और बहुत सारे आवाज को हुबहु निकालते है। इस प्रकार के विचार कहां से आया पर कहते है इस क्षेत्र में बचपन से रूचि थी। बड़ा होने पर केन्द्र सरकार से प्रोजेक्ट मिला, जिसमें आदिवासी छत्तीसगढ़ी संगीत को बजाने का, टोटल कलेक्शन करने का कार्य मिला। अपनी शिक्षा के बारे में बताया कि लोक संगीत में एमए खैरागढ़ से किया है। अब तक दिल्ली में 2 प्रधानमंत्री के द्वारा स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है। कहा कि संस्कृति को सहेजने में अपना जीवन बीता दिया। शासन से एक यही मांग है कि इस सहेजे हुए 175 प्रकार के वाद्ययंत्रों को भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करने के लिए संग्रहालय बनवा दें। जिसमें हमारे पूर्वजों द्वारा दी गई धरोहर को सहेज कर रख सकें। हम सम्मान की भूखे नहीं है, बस शासन से यही मांग है इसे गंभीरतापूर्वक विचार इस मांग को जल्द-जल्द पूरा करें। युवाओं को संदेश देते हुए कहे कि अगर प्रदूषण समस्या है तो फिर से पेड़़ लगा सकते लेकिन लोक संगीत खत्म हुआ तो उसे कोई जिंदा नहीं कर सकते हमारी पहचान ही खत्म हो जायेगी। छत्तीसगढ़ की माटी से प्रेम करें उसकी संस्कृति, सभ्यता और इतिहास को जाने, समझे और मेहनत करने में कभी पीछे न हटे। इसकी महत्ता को पूरे विश्व पटल पर फैलाए। छत्तीसगढ़ शासन का कार्य बहुत ही प्रसंशनीय है। इस प्रकार का आयोजन होने से कलाकारों को मंच मिलता है।

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