नारायणपुर–छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के कोहकामेटा ब्लॉक के ग्राम पंचायत मेटानार के आश्रित ग्राम ब्रेहबेड़ा में 1 नवंबर को पुलिस कैंप के विर...
नारायणपुर–छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के कोहकामेटा ब्लॉक के ग्राम पंचायत मेटानार के आश्रित ग्राम ब्रेहबेड़ा में 1 नवंबर को पुलिस कैंप के विरोध में माड़िया जनजाति ने आंदोलन शुरू किया। लेकिन 28 नवंबर को इन आदिवासियों को पुलिस ने आंदोलन स्थल से खदेड़ दिया। फिर दोबारा ये गांववाले एकजुट होकर 11 दिसंबर को ब्रेहबेड़ा गांव के जंगल में सड़क किनारे अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन पर बैठ गए। स्थानीय आदिवासियों का आरोप है कि 16 दिसम्बर की सुबह 7 बजे से पुलिस वालों ने कैंप लगाकर इलाके को घेर लिया। इसके बाद अब नारायणपुर पुलिस और माड़िया आदिवासियों के बीच तनाव का माहौल है। गांववाले कैंप का विरोध कर रहें हैं तो पुलिस सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देकर कैंप खोल दिया है। यहां अब बीजापुर जिले के सिलगेर जैसे हालात बन गए हैं। दोनों तरफ से विवाद और टकराव की स्थिति निर्मित हो गई है।
पांगुड गांव के रहने वाले कांडेराम हिचामी का कहना है कि सरकार के पास ज्ञापन सौंपने के लिए कुछ गांववाले नारायणपुर कलेक्ट्रेट गए थे लेकिन रास्ते में ही पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और फिर एक ग्रामीण को नक्सली बताकर जेल भेज दिया। उनका कहना है कि यदि आदिवासियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा बलों का कैंप खोला जा रहा है तो फिर उन्हें कलेक्टर के पास ज्ञापन देने से क्यों रोका गया।
उन्होंने यह भी बताया कि कोहकामेटा तहसीलदार ने 15 दिसंबर को एक लिखित आश्वासन दिया कि ब्रेहबेड़ा गांव के आसपास पुलिस कैंप नहीं खोला जाएगा। उसके अगले ही दिन आंदोलन स्थल के ठीक सामने आईटीबीपी का कैंप खोल दिया गया। इसके लिए डीआरजी के जवान जो पूर्व में इस इलाके के माओवादी थे उन्हें बुलाया गया है। बख्तरबंद गाड़ियों के साथ पानी के टैंकर, जेसीबी मशीन और आधुनिक हथियारों से लैस होकर पहुंच गए।
ग्रामीणों ने इसका वीडियो बनाया है जिसमें पुलिस के जवान स्थानीय आदिवासियों को धरना प्रदर्शन बंद करके नारायणपुर में बातचीत के लिए बुला रहे हैं। उसी वीडियो में गांववाले बता रहे हैं कि उन्हें नारायणपुर कलेक्टर से मुलाकात करने नहीं दिया जा रहा है। सरकार तक उनका ज्ञापन नहीं भेजने दें रहें हैं।
एक आदिवासी युवती दिव्या पोटाई ने बताया कि 5 दिसंबर को जब नारायणपुर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने के लिए गांववालों का 11 सदस्यीय टीम जिला मुख्यालय पहुँची तो डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) के जवानों ने उन्हें हिरासत में ले लिया। इसके बाद महिलाओं और कुछ पुरुषों को पूछताछ कर छोड़ दिया गया। और दो आदिवासी युवकों को नक्सली बताकर जेल भेज दिया गया। कुतुल गांव के मालू और आयतु उसेंडी को जेल भेज दिया गया। उन पर कई गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अब जब ब्रेहबेड़ा गांव में आईटीबीपी का कैंप खोल दिया गया है ऐसी स्थिति में दोनों तरफ से टकराव के हालात बने हैं। ग्रामीणों को डर है कि सिलगेर की घटना दोहराई जा सकती है। उन्होंने राज्यपाल और छत्तीसगढ़ सरकार से न्याय की गुहार लगाई है।
नक्सलियों के साथ रहकर ग्रामीणों को प्रताड़ित किया अब पुलिस के साथ मिलकर भी परेशान कर रहें
गांववालों ने बताया कि अबूझमाड़ इलाके में माओवादियों के साथ सालों तक काम करने वाले पूर्व नक्सली सुक्कू नरेटी, कसरू गोटा, नवीन, लच्छू और उनके साथी हैं जो अब नारायणपुर पुलिस के डीआरजी में भर्ती हो गए हैं। सरेंडर करने के बाद ये पूर्व नक्सली अब गांववालों के लिए मुसीबत बन गए हैं। आदिवासियों के घरों में सुबह सुबह जाकर उन्हें पकड़ के प्रताड़ित कर रहें हैं। जेल भेजने और फर्जी मुठभेड़ में मारने के आरोप भी ग्रामीणों ने लगाया है। उनका तर्क है कि डीआरजी में भर्ती होने वाले ये पूर्व माओवादी सरकार से प्रमोशन पाने की लालच के आदिवासियों को अपना शिकार बना रहे हैं और नक्सलियों के खात्मे का दावा करते रहे हैं।
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