नयी दिल्ली । उज़्बेकिस्तान की हिन्दी विद्वान प्रो उल्फ़त मुखीबोवा का मानना है कि हिन्दी भाषा को कामकाज की भाषा बनाने और इसे वैश्विक स्तर ...
नयी
दिल्ली । उज़्बेकिस्तान की हिन्दी विद्वान प्रो उल्फ़त मुखीबोवा का मानना
है कि हिन्दी भाषा को कामकाज की भाषा बनाने और इसे वैश्विक स्तर पर स्थापित
करने के लिए भारतीयों को आगे आना होगा तथा सरकार को प्रमुखता से हिन्दी
में काम करने के लिए बाध्य करना होगा। भारत यात्रा पर आयीं प्रो मुखीबोवा
ने शनिवार को यहां “यूनीवार्ता” से विशेष भेंट में कहा कि विश्व के कई
देशों में हिन्दी भाषा को रोमन लिपि में लिखा जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण
है। इससे एक दिन हिन्दी भाषा के लिए पहचान का संकट पैदा हो जाएगा। प्रो
मुखीबोवा ने वर्ष 1989 में तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से बनी फिल्म 'अली
बाबा और चालीस चोर' का उल्लेख करते हुए कहा कि इस फिल्म के हिन्दी के
संवाद जब रोमन लिपि में लिखे जा रहे, तो उन्होेंने इसका विरोध किया था और
हिन्दी फिल्म निर्देशक को इसके परिणामों के प्रति चेतावनी दी थी। उन्होंने
कहा कि पूरी दुनिया और विशेषकर रुस तथा मध्य एशिया क्षेत्र में हिन्दी के
प्रचार-प्रसार में हिन्दी फिल्मों का बहुत योगदान है। इस संदर्भ में
उन्होंने खासतौर पर अभिनेता राजकपूर और उनकी कई फिल्म आवारा, श्री 420 आदि
का उल्लेख किया। प्रो मुखीबोवा ने भारत में सरकारी कामकाज की भाषा अंग्रेजी
होने पर दुख व्यक्त करते हुए कहा, “ भारत आकर मेरी हिन्दी बिगड़ जाती है
और वाक्यों में अंग्रेजी भाषा के शब्द प्रयोग करने पड़ते हैं।” उन्होंने
कहा कि ऐसा इसलिए है कि देश में ज्यादातर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में हो
रहा है। उन्होंने चीन, रुस, जापान, जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि
अंग्रेजी का विरोध नहीं होना चाहिए, लेकिन भारत में सरकारी कामकाज हिन्दी
में होना चाहिए और इसके लिए भारतीयों को अपनी सरकार पर दबाव बनाना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत आज के समय में दुनिया में चिकित्सा, सूचना
प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और अन्य क्षेत्राें में विश्व का नेतृत्व कर रहा
है, तो उसे हिन्दी में कामकाज करना चाहिए। इससे दुनिया में उसका प्रभाव
बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी की परंपरा को जारी रखा जाना चाहिए। इससे
विश्व को हिन्दी सीखने की बाध्यता होगी। सारा ज्ञान भारत में हैं। उन्होंने
संतोष व्यक्त किया कि भारत के बाहर भी हिन्दी साहित्य रचा जा रहा है जिसके
भविष्य में सुखद परिणाम होंगे। प्रो मुखीबोवा हिन्दी साहित्य और परिवेश का
अध्ययन करने के लिए भारत आयी हैं। ताशकंद
विश्वविद्यालय में भारतविद् के रुप में पहचान बनाने वाली प्रो मुखीबोवा का
कहना है कि हिन्दी अपना प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ा रही है और दुनिया के सभी
देशों में हिन्दी बाेलने और लिखने वाले लोग माैजूद हैं। अंतरराष्ट्रीय
मंचाें पर हिन्दी की उपस्थिति और प्रभाव बढ़ रहा है। यूरोप में हिन्दी भाषी
लोगों की संख्या बहुत है और हिन्दी का विकास उनके हाथ में है। उन्होंने
हिन्दी साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि मध्यकालीन या भक्ति साहित्य ब्रज,
अवधी के अलावा फ़ारसी और तुर्की में रचा गया तथा उसमें जैन कवि भी शामिल
थे। उन्होंने कहा कि भक्ति साहित्य के हर शब्द के पीछे एक दर्शन है। इसे
विश्व समुदाय को समझना और समझाना चाहिए। उन्होंने भक्ति साहित्य के
लोकप्रिय कवियों कबीर, सूर, तुलसी के अतिरिक्त दादू दयाल, मलूक दास और
रज्जब आदि का विस्तार अध्ययन किया है। वर्तमान में भक्ति साहित्य की
प्रासंगिकता पर उन्होंने कहा कि भक्ति साहित्य अभी केंद्र में नहीं है,
लेकिन यह कभी ख़त्म नहीं होगा, क्योंकि इसमें व्याप्त दर्शन की भावना सभी के
बीच एकात्म और सहिष्णुता का संदेश देती है। प्रो मुखीबोवा ताशकंद राजकीय
प्राच्य विद्या संस्थान में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में हिंदी की
प्रोफेसर है। उन्होंने हिंदी भक्ति साहित्य पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त
की है।
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