जगदलपुरl आदिवासी बहुल बस्तर लोकसभा में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की जनसंख्या अधिक है। महिला-पुरुष मतदाता संख्या के मामले में भी अनुपाति...
जगदलपुरl
आदिवासी बहुल बस्तर लोकसभा में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की जनसंख्या
अधिक है। महिला-पुरुष मतदाता संख्या के मामले में भी अनुपातिक दृष्टि प्रति
एक हजार पुरुष मतदाताओं के पीछे 1080 महिला मतदाता हैं। महिला मतदाताओं की
संख्या पिछले कुछ चुनावों में बढ़ी है, ऐसा भी नहीं है बल्कि बस्तर लोकसभा
क्षेत्र में पहले आम चुनाव के समय से यह स्थित बनी हुई है। इसके बाद भी
संसदीय चुनाव लड़ने में न तो महिलाएं रुचि दिखाती हैं न ही भाजपा-कांग्रेस
जैसी पार्टियां की महिलाओं को चुनाव लड़ाने में दिलचस्पी है। इस बार भाजपा
की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लता उसेंडी को भी संसदीय चुनाव लड़ने का अवसर नहीं
मिला।
बस्तर में नक्सल चुनौती ने भी राजनीति में महिला सशक्तीकरण
को बुरी तरह से प्रभावित किया है। नक्सल संगठन में नक्सलियों ने महिलाओं की
फौज खड़ी कर ली और कई मोर्चों पर नेतृत्व भी उन्हें सौंप रखा है। दूसरी ओर
राजनीतिक दल हैं, जिनके पार्टी संगठन में महिलाओं की फौज तो है पर
लोकतंत्र में महिलाओं को चुनाव लड़ाने का साहस ये नहीं दिखा पाए हैं। भाजपा
और कांग्रेस दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की इस मामले में स्थिति और भी
दयनीय है, जिन्होंने पहले आम चुनाव से लेकर आज तक किसी महिला को बस्तर
संसदीय सीट में प्रत्याशी नहीं बनाया। महिला मतदाता बहुल बस्तर की राजनीति
में आज भी पुरुषों का ही दबदबा बना हुआ है। संसदीय चुनाव की राजनीति में
महिलाएं अपने-अपने राजनीतिक दलों में एक कार्यकर्ता की हैसियत तक सिमटी हुई
हैं।
बस्तर की राजनीति में महिलाएं विधानसभा चुनाव तक सीमित रही
हैं। बीते 75 वर्षों में संभाग से 10 महिलाएं विधायक बन सकी हैं। पहली बार
बस्तर से कांग्रेस महिला नेत्री फूलोदेवी नेताम को राज्यसभा सदस्य बनने का
अवसर मिला है। संभाग से पहली महिला विधायक 1957 के चुनाव में कांकेर से
प्रतिभा देवी बनी थीं। दूसरी महिला विधायक मिलने में 20 साल का समय लग गया।
केशकाल सीट से 1977 में मंगली झाडूराम रावटे विधायक बनी थी। इसके तीन साल
बाद 1980 में भानुप्रपातपुर सीट से विधायक बनने वाली गंगा पोटाई का नंबर
आता है। बावजूद इसके संसदीय चुनाव में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर
रही है। विधायक निर्वाचित होकर एक जनप्रतिनिधि के रूप में अपनी काबिलियत का
लोहा मनवा चुकी महिला वर्ग को आज भी संसदीय चुनाव में अवसर की प्रतीक्षा
है।
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