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मांदर की थाप पर आगाज, लोकतंत्र के महापर्व की

  बिलासपुर। लोकतंत्र के महापर्व की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रचारक अपने काम में व्यस्त हैं। उनक...

 

बिलासपुर। लोकतंत्र के महापर्व की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रचारक अपने काम में व्यस्त हैं। उनके लिए तो यह त्योहार से कम नहीं है। त्योहार मनाने वालों की संख्या भी कमतर नहीं है। चुनावी माहौल देखना है तो गांव चले जाइए या फिर स्लम बस्ती। यहां आपको वह सब-कुछ दिख जाएगा जो त्योहार के दौरान नजर आते हैं। कार्यकर्ता से लेकर मतदाता सभी एक ही रंग में रंगे नजर आ जाते हैं। चुनावी माहौल के बीच प्रशासन की तैयारी भी चल रही है। कहीं रंगोली के जरिए तो कहीं गीत संगीत के लिए यह सब किया जा रहा है। सुदूर वनांचल में कलेक्टर बैगा बिरहोर के बीच मांदर की थाप में मतदान का संदेश देना और उनके रंग में रंग जाना कोई कलेक्टर से सीखे। जैसा देश वैसा भेष, पर उद्देश्य एक। शत-प्रतिशत मतदान बिलासपुर का अभिमान। काम हो तो ऐसा ही हो।  पांच साल पहले छत्तीसगढ़ में दाऊजी की सरकार थी। करीबियों के तो दसों उंगलियां घी में ही थीं। कुछ करीबी व्यवसायी देखते ही देखते चोला बदल लिए। पैंट शर्ट से पाजामा कुर्ता धारण करने लगे। मतलब साफ है, नेताजी के रोल में आ गए थे। इतना ही नहीं, दाऊजी ने बड़ी कुर्सी भी सौंप दी थी। पूरे तीन साल रौब-दाब ऐसा कि सभा समारोह में इनकी कुर्सी तो आरक्षित रहती थी, दूसरों की कुर्सी भी तय करते थे। दाऊजी के साथ कौन-कौन मंच शेयर करेंगे। राहुल गांधी की सकरी में सभा थी। प्रदेशभर के नेताओं का जमावड़ा था। राहुल के साथ कौन-कौन चेयर शेयर करेंगे। आयोजक के सामने बड़ी चुनौती ये कि किसे उठाएं और किसे बैठाएं। समय देखिए, एक बड़े बैंक के कुर्सीधारी की कुर्सी झटके में सरक गई। वक्त-वक्त की बात है। दूसरों के लिए चेयर तय करने वाले की कुर्सी गायब हो गई। राहुल की सभा का एक और एपीसोड ले लेते हैं। वातानुकूलित मंच पर तकरीबन 30 कुर्सियां बिछाई गई थीं। सभी में आगंतुकों का नाम लिखा हुआ था। जब तक राहुल नहीं पहुंचे थे, तब तक इसमें भी जरूरी बदलाव होता रहा है। पहले 80 फिर 60 और आखिर में 30 कुर्सी लगाना तय हुआ। बहरहाल तय कुर्सियां लगाई गईं। निगम वाले नेताजी जब पहुंचे तब उनकी कुर्सी पर कब्जा हो गया था। इधर-उधर देखे, फिर नीचे आ गए। गुस्सा इतना कि पूछो मत। चुनावी सभा का मैदान था, कोपभवन तो था नहीं, लिहाजा सभा स्थल में ही एक किनारे कुर्सी पर बैठ गए। उनके बैठते ही कोपभवन में तब्दील हो गया। वीआइपी आयोजकों को जब पता चला तो सीधे कोपभवन पहुंचे। मानमनौव्वल का दौर चला। मान तो गए, पर मनाने वालों के पसीने छूट गए। वैसे ही जैसे घर के कार्यक्रम में फूफाजी रूठ जाएं, फिर देखो क्या होता है। गुरुवार को कोरबा लोकसभा क्षेत्र के चिरमिरी में प्रियंका गांधी की सभा थी। रायपुर से चार्टर्ड प्लेन से बिलासा एयरपोर्ट और यहां से उड़नखटोला से चिरमिरी की उड़ान भरना था। कुछ ऐसा ही कार्यक्रम दिल्ली से जारी हुआ था। बिलासा एयरपोर्ट में प्रियंका का स्वागत सत्कार करना था। इसके लिए चुनिंदा नेताओं की सूची बनी। वर्तमान, पूर्व विधायक और पदाधिकारी। मेजबानों की छोटी सी सूची थी। आगे-आगे सूची में नामधारी और पीछे-पीछे पंडित जी। जब तक पंडित जी एयरपोर्ट पहुंचते नामधारी भीतर हो गए थे। पंडितजी जब तक पहुंचते दरवाजा उनके लिए बंद हो गया था। मशक्कत की, ओहदे का हवाला दिया। इस बीच थोड़ा हुट हाट भी हुआ। इन सबके बाद भी बात नहीं बन पाई। देखते ही देखते चार्टर्ड प्लेन की लैंडिंग हो गई। स्वागत सत्कार का दौर चला, उड़नखटोला उड़ते ही नामधारी बाहर आए। भीतर-बाहर के खेल में पंडित जी अपने ही घर में बेगाने हो गए। 

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