कोरबा। ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों के अनुसार रेतघाट की स्वीकृति पौधा रोपण के शर्त पर दी जाती हैं। जिले में प्रति वर्ष औसतन 12 घाटों का संच...
कोरबा।
ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों के अनुसार रेतघाट की स्वीकृति पौधा रोपण के
शर्त पर दी जाती हैं। जिले में प्रति वर्ष औसतन 12 घाटों का संचालन होता
है। इन घाटों से खनिज विभाग 10.54 करोड़ रुपये का राजस्व मिलती है। उत्खनन
के बदले रेत घाट के आसपास नदी का मिट्टी क्षरण रोकने प्रति हजार क्यूबिक
मीटर रेत खनन पर कम से कम 10 पौधे लगाए जाने का प्रविधान है। 10 साल में एक
भी घाट में पौधारोपण नहीं किया गया है। समय रहते पौधा रोपण किया गया होता
तो नदी तट पर बेजाकब्जा नहीं नहीं होती। गेरवाघाट से लेकर सीतामढ़ी के बीच
नदी तटों हर साल ढाई सौ से भी अधिक आवास का निर्माण हो रहा है। ठेकेदारों
सस्ते में मजदूर उपलब्ध कराने के वाले ठेकेदार ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले
मजदूरों को यहां बसाहट देते हैं। वर्षा काल में नदी में पानी छोड़े जाने पर
बस्ती में पानी भरने की घटना हर साल होती है। यही हाल ग्रामीण क्षेत्रों
के रेत खदानाें का है। रोजगार गारंटी योजना के तहत पौधे लगाए जाते है,
लेकिन घाट संचालक इस विकल्प का उपयोग नहीं कर रहे। खनिज विभाग राजस्व
लक्ष्य पूर्ति तक सीमित है। स्वीकृत घाटों से जितना वैध ढंग से रेत का
उत्खनन किया जा रहा उससे कहीं ज्यादा अवैध रूप से अघोषित घाटों से उत्खनन
हो रहा है। निर्धारित स्थानों के नाम पर पर्ची कटाकर कर ट्रक व ट्रैक्टर
चालक किसी भी घाट से रेत का उत्खनन कर रहे हैं। विभागीय स्तर पर कार्रवाई
नहीं किए जाने की वजह से अघोषित घाटाें में मिट्टी कटाव का विस्तार हो रहा
है। पंप हाऊस, भिलाई खुर्द, सुमेधा आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहां घाट घोषित
नहीं होने के बाद भी रेत का परिवहन किया जा रहा है।
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