नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 86 वर्षीय स्वयंभू बाबा आसाराम बापू की मेडिकल आधार पर ...
नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न
मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 86 वर्षीय स्वयंभू बाबा आसाराम
बापू की मेडिकल आधार पर जमानत की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को गुजरात
सरकार को नोटिस जारी किया और तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का
निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की
पीठ ने राज्य
सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि चूंकि यह पोक्सो का मामला है, इसलिए
यह अदालत मेडिकल आधार पर जमानत की इस याचिका पर विचार करेगी। पीठ के समक्ष
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दामा शेषाद्रि
नायडू ने दलील दी कि वह (आसाराम) 'ब्लॉकेज' सहित कई बीमारियों से पीड़ित
हैं। इस मामले में आसाराम ने सजा के निलंबन और जमानत की मांग करते हुए
शीर्ष
अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया है कि वह
'मीडिया ट्रायल' और अपने 'आश्रम' पर नियंत्रण हासिल करने के उद्देश्य से की
जा रही साजिशों के शिकार हैं। उन्होंने अधिवक्ता राजेश इनामदार और शाश्वत
आनंद के माध्यम से दायर अपनी याचिका में आरोप लगाया कि उनकी सजा विसंगतियों
से भरी हुई है। वह केवल शिकायतकर्ता की अपुष्ट गवाही पर आधारित है। याचिका
में कहा गया है कि आरोपों के पक्ष में कोई चिकित्सीय या स्वतंत्र सबूत
नहीं है। उन्होंने दावा किया कि उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने और उन्हें
उनके आश्रम से बाहर निकालने के लिए झूठा फंसाया गया है। याचिका में कई दिल
के दौरे और गंभीर बीमारी सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं
का हवाला देते हुए आसाराम ने तर्क दिया कि उनका लगातार कारावास संविधान के
अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका
में यह भी दावा किया गया है, “जेल में हर बीतता दिन उनके स्वास्थ्य और
गरिमा को कम कर रहा है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि वह पहले ही 11 साल
से अधिक समय जेल में बिता
चुके हैं और हो सकता है कि वह अपनी लंबित अपील की सुनवाई तक जीवित न रहें।
आसाराम को दो दशकों से भी अधिक पुराने आरोपों के आधार पर जनवरी 2023 में
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(सी), 377 और अन्य के तहत संगीन
अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। गुजरात उच्च न्यायालय ने अगस्त 2024
में आसाराम की सजा को निलंबित करने की
याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उनके पिछले आपराधिक मामलों और अन्य लंबित
मामलों का हवाला दिया गया था हालांकि, आसाराम ने तर्क दिया कि इन असंबंधित
कार्यवाहियों का इस मामले में जमानत के उनके अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ता
है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि “नैतिक पूर्वाग्रह” या अप्रासंगिक
विचारों के आधार पर न्याय से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।
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