रायपुर। मेघनाद से युद्ध में जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तो सुषेण वैद्य ने ही जड़ी-बूटी से उनकी जान बचाई थी। उन सुषेण वैद्य की धरती के वैद...
रायपुर।
मेघनाद से युद्ध में जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तो सुषेण वैद्य ने ही
जड़ी-बूटी से उनकी जान बचाई थी। उन सुषेण वैद्य की धरती के वैद्यों की
जड़ी-बूटियों और योग्यता को सरकारी मान्यता देने की प्रक्रिया जल्द ही
चिकित्सा क्षेत्र में बदलाव की सारथी बनने जा रही हैं। गांव के लोगों को तो
पहले ही अपने वैद्यों पर विश्वास है। उम्मीद की जा रही है कि प्रमाणन की
प्रक्रिया के बाद गंभीर और जटिल बीमारियों के इलाज के लिए शहरियों का भी
भरोसा बढ़ जाएगा। 400 से अधिक वैद्यों के सहयोग से लगभग साढ़े तीन हजार
औषधीय पौधों का दस्तावेजीकरण किया जा चुका है। इनमें कई तो आयुर्वेद की
पाठ्य पुस्तकों में भी दर्ज नहीं है। वनों से आच्छादित 21 जिलों में
सर्वेक्षण की प्रक्रिया में आयुर्वेदिक महाविद्यालय रायपुर के विशेषज्ञों
की टोली भी शामिल रही। वन विभाग के साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
संस्थाओं के प्रतिनिधि भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं। वनांचलों की
जड़ी-बूटी से विभिन्न बीमारियों का इलाज कर रहे पारंपरिक वैद्यों
(चिकित्सकों) की इलाज पद्धति को प्रमाणित कर उन्हें प्रमाण पत्र दिया जा
रहा है। अब तक 100 वैद्यों को प्रमाण पत्र दिया जा चुका है। वे बिना रोकटोक
के इलाज करने के लिए अधिकृत होंगे। राज्य लघु वनोपज संघ ने यूरोपीय आयोग
परियोजना के आजीविका आधारित गतिविधियां हर्बल स्वास्थ्य देखभाल घटक के तहत
सर्वे कराया है। 21 जिलों में हुए सर्वेक्षण में 418 पारंपरिक वैद्यों की
ओर से उपयोग किए जा रहे औषधीय पौधों (जड़ी-बूटियों) का दस्तावेजीकरण किया
गया। इन जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों का प्रारंभिक वैज्ञानिक मूल्यांकन
रायपुर के सरकारी आयुर्वेद कॉलेज की टीम में आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. रक्षपाल
गुप्ता, डॉ. पी.के. जोशी, डॉ. आर.एन. त्रिपाठी, और डॉ. पी.के. बघेल ने
किया। औषधीय गुणों का वैज्ञानिक मूल्यांकन होने के बाद केंद्र सरकार के
आयुष विभाग की मदद से आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं का
विनियमन के तहत वैद्यों को भारतीय गुणवत्ता परिषद से प्रमाण पत्र दिया जा
रहा है। अब तक इलाज के लिए 86 आयुर्वेदिक दवाइयों की सिफारिश की जा चुकी
है।
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