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छत्तीसगढ़ बना वन पारिस्थितिकी तंत्र को ग्रीन जीडीपी से जोड़ने वाला पहला राज्य

  नयी दिल्ली/रायपुर । छत्तीसगढ़ ने देश में पहली बार जंगलों की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को ग्रीन जीडीपी यानी ‘हरित सकल घरेलू उत्पाद’ से ज...

 

नयी दिल्ली/रायपुर । छत्तीसगढ़ ने देश में पहली बार जंगलों की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को ग्रीन जीडीपी यानी ‘हरित सकल घरेलू उत्पाद’ से जोड़ने की पहल शुरू की है। इस अनोखी पहल से अब जंगलों से मिलने वाले लाभ, जैसे साफ हवा, पानी का संरक्षण और जैव विविधता, को हमारी आर्थिक प्रगति के साथ जोड़कर देखा जा रहा है.पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए आर्थिक तरक्की के मद्देनज़र यह कदम उठाया गया है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकसित भारत 2047’ के सपने को पूरा करने के लिए लिया गया है। उन्होंने बताया कि जंगलों से हमें कई अनदेखे लाभ मिलते हैं, जैसे कि वातावरण को ठंडा रखना, मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखना, पानी को साफ करना और पेड़ों के जरिए कार्बन डाइऑक्साइड को सोखना। इन सभी सेवाओं का सही तरीके से मूल्यांकन किया जाएगा ताकि भविष्य में हमारी योजनाएं बेहतर बन सकें और हमारी पृथ्वी को सुरक्षित रखा जा सके। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ का 44 प्रतिशत क्षेत्र वन से ढका है, जो लाखों लोगों की आजीविका का आधार है। तेंदूपत्ता, लाख, शहद और औषधीय पौधों जैसे उत्पाद वनों से प्राप्त होते हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं। इसके अलावा, वनों से पर्यावरण को कार्बन अवशोषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलती है। उन्होंने जोर दिया कि छत्तीसगढ़ में वनों की नयी पहल से जंगलों की सही कीमत समझी जाएगी। यह योजना जंगलों को बचाने और उनके फायदे गिनने में मदद करेगी। इससे बजट बनाने और योजनाओं में सुधार होगा। जंगलों से न केवल पर्यावरण को फायदा होता है, बल्कि वे रोजगार भी देते हैं। श्री साय ने कहा कि गुरु घासीदास, कांगेर घाटी और इंद्रावती जैसे राष्ट्रीय उद्यानों में लोग इको-टूरिज्म, जैसे जंगल सफारी और कैंपिंग, से जुड़े हैं। इससे आसपास के लोगों को काम मिल रहा है। उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। ये आदिवासी परंपराओं को बचाने में मदद करते हैं और लोगों को आध्यात्मिक शांति देते हैं। यह नयी योजना जंगलों को बचाने और उनके फायदे समझने का एक बड़ा कदम है, जिससे राज्य को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि जंगलों की आर्थिक कीमत तय करने के लिए वैज्ञानिक यह आकलन करेंगे कि पेड़ हर साल कितनी कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं और उसे साफ ऑक्सीजन में बदलते हैं। इसकी बाजार में क्या कीमत हो सकती है, उसे जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही पानी का संरक्षण: जंगलों से जो नदियां और झरने बनते हैं, उनका पानी कितने लोगों और खेती के लिए उपयोगी है, इसकी गणना होगी। वहीं पेड़ों से गिरने वाले पत्ते और जड़ों से मिट्टी की उर्वरता कैसे बढ़ती है, इसका लाभ खेती में कैसे होता है तथा जंगल में रहने वाले जानवरों, पक्षियों और कीड़ों की कितनी भूमिका पर्यावरण एवं खेती के लिए जरूरी है, इसका अध्ययन किया जायेगा.

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