बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूत करने वाला एक अहम फैसला सुनाया है। रायगढ़ वन मंडल में कार्यरत वनपाल दिन...
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने
कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूत करने वाला एक अहम फैसला सुनाया है।
रायगढ़ वन मंडल में कार्यरत वनपाल दिनेश सिंह राजपूत की रिट याचिका पर
सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने राज्य शासन के उस आदेश को
खारिज कर दिया, जिसमें उसकी निलंबन अवधि को ड्यूटी का हिस्सा नहीं माना गया
था और शत-प्रतिशत वेतन रिकवरी का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति बीडी
गुरु ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए यह स्पष्ट
किया कि निलंबन की अवधि को ड्यूटी के रूप में ही गिना जाएगा। उन्होंने
निर्णय में यह भी उल्लेख किया कि इसी तरह की स्थिति वाले अन्य कर्मचारियों
की निलंबन अवधि को ड्यूटी के रूप में मान्यता दी गई, लेकिन याचिकाकर्ता के
मामले में भेदभाव किया गया।
यह है मामला
याचिकाकर्ता दिनेश
सिंह 2 जनवरी 2015 से 2 जुलाई 2019 तक एतमानगर रेंज के पोंडी सब-रेंज के
अंतर्गत कोंकणा बीट के अतिरिक्त प्रभार के साथ बीट गार्ड बरौदखर के पद पर
कार्यरत थे। 2 जुलाई 2019 को उन्हें तथ्यों को छिपाने और गुमराह करने के
आरोप में निलंबित कर दिया गया था। बाद में 8 मई 2020 को मुख्य वन संरक्षक,
बिलासपुर वन वृत्त ने उनका निलंबन निरस्त कर दिया। मगर, विभागीय जांच लंबित
रहने के दौरान उन्हें कटघोरा रेंज कार्यालय में विशेष ड्यूटी पर नियुक्त
कर दिया गया। याचिकाकर्ता को 312 दिनों यानी 10 माह 7 दिनों तक निलंबित रखा
गया। विभागीय जांच में आंशिक दोषी पाए जाने के बाद छत्तीसगढ़ सिविल सेवा
(वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 के तहत उनके वेतन से 17,467
रुपये की वसूली और तीन वेतन वृद्धि रोकने का आदेश जारी किया गया था।
याचिकाकर्ता का आरोप था कि अन्य कर्मचारियों पर भी समान आरोप लगे थे। मगर,
उनके मामले में निलंबन अवधि को ड्यूटी का हिस्सा माना गया। हालांकि,
याचकिकर्ता की निलंबन की अवधि को ड्यूटी का हिस्सा नहीं माना गया था।
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